जी हुजूर मैं अखबार डालता हूँ| शब्दों का जाल डालता हूँ , मद्धिम सी गाडी से , एक नया सवाल डालता हूँ , जी हाँ मैं बवाल डालता हूँ, जी हुजूर मैं अखबार डालता हूँ | शब्दों की गश्ती को, हर द्वार डालता हूँ, पूरी दुनिया को हवा में उछालता हूँ, हर आह को सरेराह डालता हूँ, जी हुजूर मैं अखबार डालता हूँ| राजा, रंक सब मेरे नीचे से जाते, अपनी बात आमजन तक पहुंचाते , मैं बस उनका सुलभ संप्रेषण कराता हूँ, जी मैं तो बस अखबार डालता हूँ| पहले-पहल मुझे शर्म लगी, फिर मुझे अक्ल लगी, मैं तो समाज सेवियों की सेवा करता हूँ , बिन लालच नींद अपनी कुर्बान करता हूँ , मैं उनका वोट बैंक बढाता हूँ , जी मैं तो बस अखबार डालता हूँ| (अनु)