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शायरी.....

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मेरी हर बात सबको बताती है ये शायरी अजीब है चुप रह कर भी बहुत कुछ कह जाती है | (अनु) मेरी कलम से  Follow us on facebook

मौसम

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मौसम का फितूर देख चढा एक फितूर हम पर भी न चाहते हुए आ गए हम भी धुंध को देख न माना दिल मौसम का मजा लेने, आ गए हम भी | (अनु) 

मुहब्बत

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मुहब्बत लिखता हूँ,  पर की नहीं मुहब्बत मैने कभी मुहब्बत पढता हूँ, पर जी नहीं मुहब्बत मैने कभी मिलते हैं हंसो के जोड़े राहों में कोई बताऐ यही होती है मुहब्बत क्योंकि की नहीं मुहब्बत मैने अभी| (अनु)

आवाहन दीपों का

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रे बाती दिया, तू आजा वो चाँद चला गया है अब तू आजा तम अमावस का फैल रहा रौशन घर को करने आजा संग मेरे दिवाली मनाने आजा रे बाती दिया, अब तू आजा घर गेंदे से मैने सजाया मिठाइयों की थाल को लगाया लेकिन, अंधेरे में सब आधा ये अंधेरा तू मिटाने आजा रे बाती दिया, अब तू आजा| आजा हम दीपमलिका बनाऐंगे दीपावली संग मनायेंगे हास, उमंग हृदय में भर-भर उस चाँद को चिढायेंगे बात मेरी सुन तू आजा रे बाती दिया, अब तू आजा| मैं पैसों की खनन सुनता हुँ, लक्ष्मी की पगधुन सुनता हूँ, स्वागत लक्ष्मी का करने आजा रे बाती दिया, अब तू आजा| (अनु)

नशीली रात 🌃

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अखबार 📰 वाला

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जी हुजूर मैं अखबार डालता हूँ| शब्दों का जाल डालता हूँ , मद्धिम सी गाडी से , एक नया सवाल डालता हूँ , जी हाँ मैं बवाल डालता हूँ, जी हुजूर मैं अखबार डालता हूँ | शब्दों की गश्ती को, हर द्वार डालता हूँ, पूरी दुनिया को हवा में उछालता हूँ, हर आह को सरेराह डालता हूँ, जी हुजूर मैं अखबार डालता हूँ| राजा, रंक सब मेरे नीचे से जाते, अपनी बात आमजन तक पहुंचाते , मैं बस उनका सुलभ संप्रेषण कराता हूँ, जी मैं तो बस अखबार डालता हूँ| पहले-पहल मुझे शर्म लगी, फिर मुझे अक्ल लगी, मैं तो समाज सेवियों की सेवा करता हूँ , बिन लालच नींद अपनी कुर्बान करता हूँ , मैं उनका वोट बैंक बढाता हूँ , जी मैं तो बस अखबार डालता हूँ| (अनु)

मेरी पहचान

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जबरदस्ती का शायर हूँ, शायरी तो सुनाऊँगा, तुम चाहो न चाहो, तालियाँ तो ले जाऊँगा| ( अनु )

मैं

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sad shayri

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love shyari

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my feelings

its for you and my some friends please don't ignore my words and my feelings. zindagi me yaaro apni had me rahna khud se jyada kisi se etbaar n karna kisi ko itna beizat n karna ki khud ki izat karna hi tum bhool jana                                                -anu

सर्द

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लगता है बादलों का आसमान से मन भर आया इसलिए, उन्होंने धरती का रुख अपनाया आज जब मैने द्वार खोला सर्द हवा ने मुझ पर हमला बोला शरीर मेरा शिथिल हो गया कुछ पल के लिये मैं सुध-बुध खो गया मुझे न जाने क्या ख्याल आया? खुद को बंद कर मैं सफर करने निकल आया मैने देखा, धुंध ने इस धरा को घेर लिया अब सर्द ने पैर पसारना शुरू किया। इस सर्द से सब लोग खुश हो रहे खुश दिल से इसका स्वागत कर रहे। लेकिन, ये सर्द कुछ लोगों पर भारी पड़ रही इसलिये, हर ओर आग और बीड़ी जल रही। हर ओर सर्द के आने की ख़ुशी बढ़ रही क्योंकि, ये मौसम को रंगीन कर रही। इस सर्द की बात भी अजब निराली है दोस्त तो है, बढ़ जाए तो दुश्मन भी प्यारी है। किसान और युवाओं की दोस्त है लेकिन, दुश्मन बुजुर्गों की फिर भी इसके आने की चिंता हर किसी को होती।

कैसे.......जाता हूँ

इक जरा सी चाह में इस क़दर बिखर जाता हूँ कि समझ नहीं आता कैसे? इतना लालची हो जाता हूँ। खुद की परवाह इतनी करता हूँ कि समझ नहीं आता कैसे? इंसानियत भूल जाता हूँ। अभी-अभी मिले प्यार में इतना खो जाता हूँ कि समझ नहीं आता कैसे? माँ-बाप का प्यार भूल जाता हूँ। आशिकी में गर कोई ना कह दे तब इतना टूट जाता हूँ कि समझ नहीं आता कैसे? उसकी भावना ही भूल जाता हूँ। अपनी हर गलती में एक पंक्ति लिख देता हूँ कि समझ नहीं आता कैसे? यूँ ही छुट जाता हूँ। ----------------------------------------------------- ________________________________