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सितंबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

नशीली रात 🌃

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अखबार 📰 वाला

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जी हुजूर मैं अखबार डालता हूँ| शब्दों का जाल डालता हूँ , मद्धिम सी गाडी से , एक नया सवाल डालता हूँ , जी हाँ मैं बवाल डालता हूँ, जी हुजूर मैं अखबार डालता हूँ | शब्दों की गश्ती को, हर द्वार डालता हूँ, पूरी दुनिया को हवा में उछालता हूँ, हर आह को सरेराह डालता हूँ, जी हुजूर मैं अखबार डालता हूँ| राजा, रंक सब मेरे नीचे से जाते, अपनी बात आमजन तक पहुंचाते , मैं बस उनका सुलभ संप्रेषण कराता हूँ, जी मैं तो बस अखबार डालता हूँ| पहले-पहल मुझे शर्म लगी, फिर मुझे अक्ल लगी, मैं तो समाज सेवियों की सेवा करता हूँ , बिन लालच नींद अपनी कुर्बान करता हूँ , मैं उनका वोट बैंक बढाता हूँ , जी मैं तो बस अखबार डालता हूँ| (अनु)

मेरी पहचान

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जबरदस्ती का शायर हूँ, शायरी तो सुनाऊँगा, तुम चाहो न चाहो, तालियाँ तो ले जाऊँगा| ( अनु )