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आवाहन दीपों का

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रे बाती दिया, तू आजा वो चाँद चला गया है अब तू आजा तम अमावस का फैल रहा रौशन घर को करने आजा संग मेरे दिवाली मनाने आजा रे बाती दिया, अब तू आजा घर गेंदे से मैने सजाया मिठाइयों की थाल को लगाया लेकिन, अंधेरे में सब आधा ये अंधेरा तू मिटाने आजा रे बाती दिया, अब तू आजा| आजा हम दीपमलिका बनाऐंगे दीपावली संग मनायेंगे हास, उमंग हृदय में भर-भर उस चाँद को चिढायेंगे बात मेरी सुन तू आजा रे बाती दिया, अब तू आजा| मैं पैसों की खनन सुनता हुँ, लक्ष्मी की पगधुन सुनता हूँ, स्वागत लक्ष्मी का करने आजा रे बाती दिया, अब तू आजा| (अनु)